Sawan Spl: सावन (श्रावन) को भोले भंडारी का महीना कहा जाता है। इस महीने में भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है। इस महीने में शिवभक्त भोले बाबा के प्रति अपना प्रेम और श्रद्धा व्यक्त करने के लिए अलग-अलग कार्य करते हैं। मान्यता है कि, सावन महीने में जो भी भक्त भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग का नाम जपता है उसके सातों जन्म तक के पाप नष्ट हो जाते हैं। इन्हीं में से एक है ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का स्थान चौथा है।
मान्यता है कि ऊं शब्द की उत्पत्ति श्री ब्रह्मा जी के मुख से हुई है। इसलिए हर धार्मिक शास्त्र या वेदों का पाठ ऊं शब्द के साथ ही किया जाता है। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग ॐकार अर्थात ऊं का आकार लिए हुए है, इसलिए इसे ओंकारेश्वर नाम से पुकारा जाता है। हिंदू धर्म में ओंकारेश्वर के दर्शन व पूजन का विशेष महत्व है। मान्यता है कि, तीर्थ यात्री जब सभी तीर्थों का जल लाकर ओंकारेश्वर में अर्पित करते हैं, तभी उनके सारे तीर्थ पूरे माने जाते हैं। ओंकारेश्वर में ज्योतिर्लिंग के दो रुप ओंकारेश्वर और ममलेश्वर की पूजा की जाती है।
सावन में ओंकारेश्वर में अद्भुत, अलौकिक और अकल्पनीय छटा देखने को मिलती है। ओंकारजी अपने भक्तों का कुशलक्षेम जानने नगर भ्रमण पर निकलते हैं तो स्वयं शिव स्वरूप भगवान ममलेश्वर उनकी अगवानी करने कोटितीर्थ घाट पहुंचते हैं। यही एक ऐसी तीर्थ नगरी है जहां द्वादश ज्योतिर्लिंग नौका विहार करते हैं। लेकिन कोरोना संकट की वजह से इस साल कई धार्मिक गतिविधियों पर रोक है।
भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग में चौथा ओंकारेश्वर है। यह ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश में नर्मदा किनारे मान्धाता पर्वत पर स्थित है। बताया जाता है कि इनके दर्शन से पुरुषार्थ चतुष्टय की प्राप्ति होती है। यह ज्योतिर्लिंग औंकार अर्थात ऊं का आकार लिए हुए है, इस कारण इसे ओंकारेश्वर नाम से जाना जाता है। नर्मदा नदी के बहने से पहाड़ी के चारों ओर ओम का आकार बनता है। ओंकारेश्वर मंदिर का एक पौराणिक महत्व भी है। मान्यता के मुताबिक एक बार देवता और दानवों के बीच युद्ध हुआ और देवताओं ने भगवान शिव से जीत की प्रार्थना की। प्रार्थना से संतुष्ट होकर भगवान शिव यहां ओंकारेश्वर के रूप में प्रकट हुए और देवताओं को बुराई पर जीत दिलाकर उनकी मदद की।
यहां पहाड़ी के चारों ओर नदी के बहने से यहां ऊं का आकार बनता है। ऊं शब्द की उत्पति भगवान ब्रह्मा जी के मुख से हुई है। इसलिए किसी भी धार्मिक शास्त्र या वेदों का पाठ ऊं के साथ किया जाता है। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग ॐकार अर्थात ऊं का आकार लिए हुए है, इस कारण इसे ओंकारेश्वर नाम से पुकारा जाता है। ओमकार का उच्चारण सर्वप्रथम स्रष्टिकर्ता ब्रह्मा के मुख से हुआ था। वेद पाठ का प्रारंभ भी ॐ के बिना नहीं होता है। उसी ओमकार स्वरुप ज्योतिर्लिंग श्री ओंकारेश्वर है, अर्थात यहाँ भगवान शिव ओम्कार स्वरुप में प्रकट हुए हैं। ज्योतिर्लिंग वे स्थान कहलाते हैं जहाँ पर भगवान शिव स्वयम प्रकट हुए थे एवं ज्योति रूप में स्थापित हैं।
स्कन्द पुराण, शिवपुराण और वायुपुराण में ओम्कारेश्वर क्षेत्र की महिमा उल्लेख है। ओंकारेश्वर में कुल 68 तीर्थ है। यहां 33 कोटि देवता विराजमान है। दिव्य रूप में यहां पर 108 प्रभावशाली शिवलिंग है। 84 योजन का विस्तार करने वाली मां नर्मदा का विराट स्वरुप है। श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग इंदौर से 77 किमी की दुरी पर स्थित है। यह ऐसा एकमात्र ज्योतिर्लिंग है जो नर्मदा के उत्तर तट पर स्थित है। भगवान शिव प्रतिदिन तीनों लोकों में भ्रमण के पश्चात यहां आकर विश्राम करते हैं। अतएव यहां प्रतिदिन भगवान शिव की विशेष शयन व्यवस्था एवं आरती की जाती है तथा शयन दर्शन होते हैं।
ओंकारेश्वर और अमलेश्वर दोनों शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यहां पर्वतराज विंध्य ने घार तपस्या की थी और उनकी तपस्या के बाद उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना कर कहा के वे विंध्य क्षेत्र में स्थिर निवास करें उसके बाद भगवान शिव ने उनकी यह बात स्वीकार कर ली। वहां एक ही ओंकारलिंग दो स्वरूपों में बंटी है। इसी प्रकार से पार्थिवमूर्ति में जो ज्योति प्रतिष्ठित हुई थी, उसे ही परमेश्वर अथवा अमलेश्वर ज्योतिर्लिंग कहते हैं।
मान्यता के मुताबिक सतयुग में जब श्री राम के पूर्वज, इक्ष्वाकु वंश के राजा मान्धता, नर्मदा स्थित ओंकारेश्वर पर राज करते थे, तब ओंकारेश्वर की चमक अत्यंत तेज थी। इसकी चमक से आश्चर्य चकित होकर नारद ऋषि भगवान् शिव के पास पहुंचे तथा उनसे इसका कारण पूछा। भगवान् शिव ने कहा कि प्रत्येक युग में इस द्वीप का रूप परिवर्तित होगा। सतयुग में यह एक विशाल चमचमाती मणि, त्रेता युग में स्वर्ण का पहाड़, द्वापर युग में तांबे तथा कलयुग में पत्थर होगा। पत्थर का पहाड़, यह है हमारे कलयुग का ओंकारेश्वर। ओंकारेश्वर एक जागृत द्वीप है। इस द्वीप के वसाहत का भाग शिवपुरी कहलाता है। ऐसा माना जाता है कि किसी काल में यहाँ ब्रम्हपुरी नगरी एवं विष्णुपुरी नगरी भी हुआ करती थीं। तीनों मिलकर त्रिपुरी कहलाते थे।